19 वी दशक के भारत के बड़े स्वदेशी बिज़नेस हाउस

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डाबर (1884)


डॉक्टर बर्मन कोलकाता के पास एक छोटे गांव में इलाज के लिए गए थे। मरीज़ों की देख रेख के दौरान उन्होंने अपनी आयुर्वेदिक दवाओं से कई ग्रामीणों को ठीक किया था। इससे लोगों के मन में उनके प्रति विश्वास पैदा हुआ जिससे उनकी दवाओं के चर्चे फैलने लगे थे। वे जल्दी ही अपने इलाक़े से बाहर भी प्रसिद्ध होने लगे। उन्होंने बंगाल में एक छोटी क्लिनिक शुरू की, जो अब देश की चौथी बड़ी एफ.एम.सी.जी. कंपनी में बदल चुकी है। आज की तारीख़ में दुनिया में आयुर्वेदिक दवाओं के उत्पादक हैं।

गोदरेज (1897)


आर्देशिर गोदरेज पहले वकालत किया करते थे। तभी उनके दिमाग़ में ताला बनाने की योजना ने जन्म लिया। उन्होंने अपना वकालत का पेशा छोड़कर ताला बनाने का काम शुरू किया। जल्द ही उनके द्वारा बनाए गए तालों ने लोगों के मनों में विश्वास पैदा किया और देखते ही देखते वे दुनिया की सबसे मज़बूत और सुरक्षित अलमारियां और अन्य सुरक्षा उपकरण बनाने लगे। इसके बाद उन्होंने साबुन से लेकर वेजिटेबल तेल का उत्पादन शुरू किया। फिर वे देखते ही देखते ग्लोबल ब्रांड बन गए।

नीलगिरीज (1905)

एस. अरुमुगा मुदलियार ब्रिटिश राज में चेक एक ज़िले से दूसरे ज़िले में पहुंचाने का काम करते थे। जब वे एरोड ज़िले से ऊटी या कुनुर जाते थे, तो लोग उनसे कई सामान ख़रीदकर लाने की भी मांग करते रहते थे। पहले उन्होंने वानारपेट के एक अंग्रेज़ से उसका मक्खन का बिज़नेस ख़रीदा और फिर नीलगिरी डेयरी फ़ार्म शुरू किया। पहले वे अपने स्टोर पर डेयरी प्रोडक्ट्स रखते थे और फिर दूसरे सामान रखने लगे। जब अरुमुगा का बेटा यूरोप गया तो लौटकर उसने बेंगलुरु में 1936 में सुपर मार्केट स्थापित किया।

टाटा ग्रुप (1868)


29 साल के जमशेदजी नौशेरवां टाटा ने वर्ष 1868 में 21 हज़ार की पूंजी से ट्रेडिंग कंपनी शुरू की। उन्होंने चिंचपोकली में दीवालिया हो चुकी एक तेल मिल ख़रीदी। इसे कॉटन मिल में तब्दील कर दिया। दो साल में इसे फ़ायदे में ले आए। इसके बाद टाटा का विस्तार शुरू हुआ। आज़ादी के समय तक टाटा ग्रुप एक बहुराष्ट्रीय कंपनी बन चुका था। उनके चार मुख्य लक्ष्य थे-हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्लांट, स्टील प्लांट, वर्ल्ड क्लास एजुकेशनल इंस्टीट्यूट और एक बड़ा होटल। उन्होंने अपने सारे लक्ष्यों को हक़ीक़त में बदला।

रूह आफ़्ज़ा (1907)


दिल्ली के हक़ीम अब्दुल मजीद ने कई जड़ी-बूटियों, सब्ज़ियों, फूलों और फलों को मिलाकर एक शर्बत तैयार किया, जो रूह आफ़्ज़ा के नाम से घर-घर पहुंच गया। गर्मियों में ये उत्पाद बहुत शीतलता देता था। बाद में जब ये कंपनी कई यूनानी मेडिसिन के उत्पाद बनाने लगी, तो इसका नाम हमदर्द कर दिया गया। बाद में इस कंपनी ने पाकिस्तान और बांग्लादेश तक अपना कारोबार फैला लिया। बंटवारे के बाद हक़ीम मजीद के पार्टनर और बेटे पाकिस्तान चले गए, तो उन्होंने वहां भी इसी नाम से कंपनी खोल ली।

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