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‘आगे चौराहे के बाद बाएं मोड़ लेना।’ मोटरसायकल पर बैठी रेखा
अपने पति से बोली,
‘थोड़ी देर के लिए वीणा के यहां हो आते हैं।
वह अकेली बोर हो जाती होगी।’
‘नहीं!’ राजन ने गम्भी र स्वर में उत्तर दिया,
‘तुम चाहो तो चली जाओ, मैं नहीं जाऊंगा।’
‘क्यों?’ अनपेक्षित जवाब सुन रेखा आक्रोशित हो उठी,
‘तुम क्यों नहीं चलोगे मेरी सहेली के यहां?
पहले भी तुम कई बार वहां जाने से मना कर
चुके हो।’
रेखा का आक्रोशि त स्वर अब अनजानी शंका से भी भर उठा।
‘मैं भी तो जानूं, क्या वजह है वहां न जाने की!’
‘ऐसा कुछ नहीं है, जो तुम समझ न सको।’
राजन गाड़ी रोककर रेखा को समझाते हुए बोला,
‘हम एक-दो बार गए हैं उसके घर।
पर क्या है कि ... अब तुम्हें कैसे समझाऊं! प्ली ज़ ज़रा मेरे नज़रिए से सोचो।
देखो वीणा के पति देश सेवा के लि ए सीमा पर हैं। वे छह-छह माह में घर आते हैं।
हम वहां एक साथ जाते हैं, तो उस फौजी की
पत्नी को थोड़ा बुरा तो लगता होगा।
शायद उसे अपने पति की और ज्य़ादा याद आती होगी।
तुम्हारे साथ वहां जाकर मैं उसे दुखी नहीं करना चाहता।
बस यही कारण है।’
राजन की बात सुनकर रेखा स्तब्ध रह गई।
इस दृष्टि से तो उसने कभी सोचा ही न था।
‘सिविक सेंस’ की ऐसी उत्कृष्ट सोच देख
उसे अपने पति पर गर्व हो आया।
उसका आक्रोशि त चेहरा मुस्कु राहट
से जगमगाने लगा और प्रशंसात्मक नज़रों से पति को देखते हुए वह
बोली,
‘तुम बि लकुल सही कह रहे हो। अच्छा चलो अब चौराहे पर
मुझे उतार देना, मैं ही हो आती हूं।’
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