मैं ही क्यों?

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हमेशा शालिनी को ही डांट खानी पड़ती थी,
चाहे वो सही हो या नही...

आज माहौल बहुत ही ग़मग़ीन था हर तरफ़। शालिनी वर्षों
बाद अपने गांव आई थी। वो भी पिता की मृत्यु पर। पिता के
बाद पहली बार गांव में अच्छा नहीं लग रहा था।
शालिनी चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी। पिता की
कामक्रिया में मां और तीनों
भाई-बहनों के साथ वो यहां
पहुंची थी। बार-बार अपने
भाई-बहनों को ख़ासकर छोटी
बहन, जो जिद्दी स्वभाव की
थी, उसे समझाती रहती। मां
से ठीक से बात करना, उन्हें
ठेस न पहुंचे। वो बहुत अकेली
हैं अभी। लेकिन छोटी बहन
नमिता कभी कुछ समझना ही
नहीं चाहती थी। वो भूल गई
कि किस वजह से सभी गांव
में इकट्टठा हुए हैं और मां के
साथ ऊंची आवाज़ में बात
करने लगी। ये देखकर शालिनी
ने उसे डांटा, तो इस बार
नमिता शालिनी से भी उलझ
गई।



मां ने बीच-बचाव करते
हुए शालिनी को ही डांटा। जब
से भाई-बहनों का शालिनी
के जीवन में आगमन हुआ,
उसे हमेशा ही ऐसे रवैए का
सामना करना पड़ता रहा था।
इस बार शालिनी के सब्र का
भी बांध टूट गया। उसने मां से
पूछा, ‘बचपन से, आप जब
भी हमारे बीच झगड़ा होता है,
आप मुझे ही समझाती है, चाहे
मैं ग़लत रहूं या सही, क्यांे मां
आप...? प्लीज़ बताइए, क्या
हर बार मैं ही ग़लत लगती हूं
आपको?’ शालिनी ने भावुक
होकर पूछा।
मां ने कहा, ‘तुम्हें ही
डांटती हूं, समझाती हूं, क्योंकि
तुम बात समझती हो। वो नहीं
समझती, इसलिए उसे नहीं
समझाती। तुम से मुझे उम्मीद
होती है।’ मां की बात सुनकर
शालिनी खामोश हो गई। पहली
बार उसे समझ में आया कि मां
उसे कम नहीं समझती, ज़्यादा
मानती है।
Source: Dainik Bhaskar

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