बचपन में पिता की हत्या, मां को कैंसर, लेकिन खुद पढ़ी और बहन को पढ़ाया, आज दोनों है IAS

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“बचपन में मम्मी कहती थी कि पापा चाँद पर गये हुए हैं। फिर हमने धीरे-धीरे उनसे पूछना शुरू किया तब उन्होने पापा के साथ हुए हादसे के बारे में बताया।”

फ़ैज़ाबाद की डीएम का पद संभाल चुकी किंजल सिंह और उनके परिवार की कहानी बहुत ही भावुक और दर्दनाक है। किंजल सिंह 2008 में आईएएस में चयनित हुईं थी। आज उनकी पहचान एक तेज़-तर्रार अफ़सर के रूप में होती है। उनके काम करने के तरीके से जिले में अपराध करने वालों के पसीने छूटते हैं। लेकिन उनके लिए इस मुकाम तक पहुंचना बिल्कुल भी आसान नही था।

किंजल सिंह मात्र 6 महीने की थी जब उनके पुलिस अफ़सर पिता की हत्या पुलिस वालों ने ही कर दी थी।

आज देश में बहुत सी महिला आईएएस हैं। लेकिन वो किंजल सिंह नहीं है। उनमें बचपन से ही हर परिस्थितियों से लड़ने की ताक़त थी। 1982 में पिता के.पी सिंह की एक फ़र्ज़ी एनकाउंटर में हत्या कर दी गयी थी। तब के पी सिंह, गोंडा के डीएसपी थे। अकेली विधवा माँ विभा सिंह ने ही किंजल और बहन प्रांजल सिंह की परवरिश की। उन्हे पढ़ाया-लिखाया और आइएएस बनाया। यही नही करीब 31 साल बाद आख़िर किंजल अपने पिता को इंसाफ़ दिलाने में सफल हुई। उनके पिता के हत्यारें आज सलाखों के पीछे हैं। लेकिन क्या एक विधवा माँ और दो मासूम बहनों के लिए यह आसान था।
"मुझे मत मारो मेरी दो बेटियां हैं"-

किंजल के पिता के आख़िरी शब्द थे कि ‘मुझे मत मारो मेरी छोटी बेटी है’।
वो ज़रूर उस वक़्त अपनी चिंता छोड़ कर अपनी जान से प्यारी नन्ही परी का ख्याल कर रहे होंगे। किंजल की छोटी बहन प्रांजल उस समय गर्भ में थी। शायद अगर आज वह ज़िंदा होते तो उन्हे ज़रूर गर्व होता कि उनके घर बेटियों ने नहीं बल्कि दो शेरनियों ने जन्म लिया है।

बचपन जहाँ बच्चों के लिए सपने संजोने का पड़ाव होता है। वहीं इतनी छोटी उम्र में ही किंजल अपनी माँ के साथ पिता के क़ातिलों को सज़ा दिलाने के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने लगी। हालाँकि उस नन्ही बच्ची को यह अंदाज़ा नही था कि आख़िर वो वहाँ क्यों आती हैं। लेकिन वक़्त ने धीरे-धीरे उन्हे यह एहसास करा दिया कि उनके सिर से पिता का साया उठ चुका है।

इंसाफ़ दिलाने के संघर्ष में जब माँ हार गयी कैंसर से जंग
प्रारंभिक शिक्षा बनारस से पूरी करने के बाद, माँ के सपने को पूरा करने के लिए किंजल ने दिल्ली का रुख किया तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। बच्ची का साहस भी ऐसा था कि छोटे से जनपद से दिल्ली जैसी नगरी में आकर पूरी दिल्ली यूनिवर्सिटी में टॉप किया वो भी एक बार नहीं बल्कि दो बार। किंजल ने 60 कॉलेजेस को टॉप करके गोल्ड मैडल जीता था।

कहते हैं ना वक़्त की मार सबसे बुरी होती है। जब ऐसा महसूस हो रहा था कि सबकुछ सुधरने वाला है, तो जैसे उनके जीवन में दुखो का पहाड़ टूट पड़ा। माँ को कैंसर हो गया था। एकतरफ सुबह माँ की देख-रेख तथा उसके बाद कॉलेज। लेकिन किंजल कभी टूटी नहीं लेकिन ऊपर वाला भी किंजल का इम्तिहान लेने से पीछे नहीं रहा, परीक्षा से कुछ दिन पहले ही माताजी का देहांत हो गया।

शायद ऊपर वाले को भी नहीं मालूम होगा कि ये बच्ची कितनी बहादुर है तभी तो दिन में माँ का अंतिम संस्कार करके, शाम में हॉस्टल पहुंचकर रात में पढाई करके सुबह परीक्षा देना शायद ही किसी इंसान के बस की बात हो।पर जब परिणाम सामने आया तो करिश्मा हुआ। इस बच्ची ने यूनिवर्सिटी टॉप किया और स्वर्ण पदक जीता।
माँ का आइएएस बनने का सपना पूरा किया बेटियों ने
किंजल बताती हैं कि कॉलेज में जब त्योहारों के समय सारा हॉस्टल खाली हो जाता था तो हम दोनों बहने एक दूसरे की शक्ति बनकर पढ़ने के लिए प्रेरित करती थी। फिर जो हुआ उसका गवाह सारा देश बना, 2008 में जब परिणाम घोषित हुआ तो संघर्ष की जीत हुई और दो सगी बहनों ने आइएएस की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण कर अपनी माँ का सपना साकार किया।

किंजल जहाँ आईएएस की मेरिट सूची में 25 वें स्थान पर रही तो प्रांजल ने 252वें रैंक लाकर यह उपलब्धि हासिल की पर अफ़सोस उस वक़्त उनके पास खुशियाँ बांटने के लिए कोई नही था।

किंजल कहती हैं:
“बहुत से ऐसे लम्हे आए जिन्हें हम अपने पिता के साथ बांटना चाहते थे। जब हम दोनों बहनों का एक साथ आईएएस में चयन हुआ तो उस खुशी को बांटने के लिए न तो हमारे पिता थे और न ही हमारी मां।”

किंजल अपनी माँ को अपनी प्रेरणा बताती हैं। दरअसल उनके पिता केपी सिंह का जिस समय कत्ल हुआ था उस समय उन्होने आइएएस की परीक्षा पास कर ली थी और वे इंटरव्यू की तैयारी कर रहे थे। पर उनकी मौत के साथ उनका यह सपना अधूरा रह गया और इसी सपने को विधवा माँ ने अपनी दोनो बेटियों में देखा। दोनो बेटियों ने खूब मेहनत की और इस सपने को पूरा करके दिखाया।

आख़िर इंसाफ़ मिला

एक कहावत है कि “जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड” यानि देर से मिला न्याय न मिलने के बराबर है। जाहिर है हर किसी में किंजल जैसा जुझारूपन नहीं होता और न ही उतनी सघन प्रेरणा होती है, पर फिर भी इंसाफ़ इंसाफ़ होता है।

किंजल इन भावुक पल में खुद को मजबूत कर कहती हैं:
“सबसे ज्यादा भावुक करने वाली बात ये है कि मेरी मां जिन्होंने न्याय के लिए इतना लंबा संघर्ष किया आज इस दुनिया में नहीं है। अगर ये फैसला और पहले आ जाता तो उन सब लोगों को खुशी होती जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। ”
क्या था मामला?

दरअसल इस मामले में पुलिस का दावा था कि केपी सिंह की हत्या गांव में छिपे डकैतों के साथ क्रॉस-फायरिंग में हुई थी। मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई। जांच के बाद पता चला कि किंजल के पिता की हत्या उनके ही महकमे के एक जूनियर अधिकारी आरबी सरोज ने की थी। हद तो तब हो गई जब हत्याकांड को सच दिखाने के लिए पुलिसवालों ने 12 गांव वालों की भी हत्या कर दी। 31 साल तक चले मुकदमे के बाद सीबीआई की अदालत ने तीनों अभियुक्तो को फांसी की सजा सुनाई। इस मामले में 19 पुलिसवालों को अभियुक्त बनाया गया था। जिसमें से 10 की मौत हो चुकी है।

जिलाधिकारी खीरी के पद पर रहते हुए इन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए जिसमे शख्सियत, देवी अवार्ड्स, हाफ मैराथन मुंबई, इंदौर में राष्ट्रीय अवार्ड, राज्य निर्वाचन आयोग मुख्य है।
किंजल सिंह अभी फ़ैजाबाद की जिलाधिकारी हैं। लेकिन एक साल में लखीमपुर खीरी की जिलाधिकारी रहते जो कार्य इन्होने किया वो कोई नही कर सका। जनपद खीरी में थारु आदिवासियों के लिए किंजल सिंह किसी मसीहा से कम नहीं है। श्रीमती किंजल सिंह जी ने थारुओं को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए भरसक प्रयास किये जिसे हर किसी ने सराहा तथा इसके लिए उन्हें मुख्यमंत्री, गृह मंत्री तथा कई संस्थाओं ने सम्मानित किया।

किंजल सिंह के जज्बे को सलाम, जिसने जीवन में आने वाली कठिनाइयों को अपना रास्ता बनाया और अपनी मंजिल पर पहुंचकर मेरे जैसे कई युवाओं को निरन्तर संघर्ष करते रहने की सीख दी।

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