बन्धन

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मनु ने अश्रुपूरित नयनों से ख़ुद के लिखे पत्र को दोबारा पढ़ा और पलंग के पास वज़न से दबाकर
रख दिय ा, जिससे रवि के कमरे में घुसते ही उस पर नज़र पड़े!

आज दृढ़ संकल्प किय था, ‘नहीं रहना अब इस घर में जहां न उसे इज़्ज़त मिले, न प्यार!’
चार जोड़ी कपड़े, दवा व उसका पर्चा , अपना चश्मा और कुछ पैसे रखे। ए.टी.एम. कार्ड तो था ही!

सोचा ठीक साढ़े चार बजे नि कल लेगी, जि ससे मुन्ने और सासू मां को ज्य़ादा देर अकेले न रहना पड़े। घड़ी
पर नज़र डाली, तो 2 ही बजे थे। याद आया आज बाई छुट्टी पर है, तो खाना बनाने का वि चार किय ा।
खाना तैयार कर, मुन्ने का दूध बनाया, नैपी बदली,उसे बोतल पकड़ाई।

सासू मां को देख दहलीज़ से
क़दम बाहर रखने जा ही रही थी कि क़दम चुंबकीय शक्ति से दहलीज़ से जम गए। मुन्ना चीख़ कर रो रहा
था। शायद पलंग से गिर पड़ा था!

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